युवा कवि, आलोचक-संपादक देवेन्द्र कुमार देवेश ने कोसी अंचल (सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया जिलों) में जन्मे अथवा यहॉं के निवासी रचनाकारों द्वारा रचित पद्य साहित्य को उसके समालोचनात्मक आकलन के साथ क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित रूप में 'कविता कोसी' शीर्षक से प्रकाशित करने का प्रशंसनीय कार्य किया है। 'कविता कोसी' के अब तक (2009 ई.) पॉंच खंड प्रकाशित हैं, जिनकी प्रकाशक हैं अनीता पंडित प्रत्येक खंड में डॉ. कामेश्वर पंकज द्वारा लिखित समालोचनात्मक आलेख पुस्तक के प्रारंभ में दिया गया है।
हजारों वर्षों से जिस नदी की धाराएँ निरंतर परिवर्तनशील रही हैं, उस नदी की धाराओं के साथ गतिशील जीवन-जगत की अनुभूतियों का अवगाहन साहित्य के माध्यम से किया जाना सचमुच न केवल दिलचस्प वरन् महत्त्वपूर्ण भी है। लेकिन विध्वंसकारी कोसी ने अपने तटवर्ती जीवन-जगत के साथ संभवत: अधिकांश साहित्यिक विरासत को भी प्राय: निगलने का काम ही किया है। कोसी अंचल के निकटवर्ती नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों के विध्वंस (1197 ई.) के कारण भी इस क्षेत्र की ज्ञान और साहित्य विषयक विरासत नष्ट हुई होगी।
Monday, October 24, 2011
कविता कोसी : कोसी अंचल की साहित्यिक विरासत
युवा कवि, आलोचक-संपादक देवेन्द्र कुमार देवेश ने कोसी अंचल (सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया जिलों) में जन्मे अथवा यहॉं के निवासी रचनाकारों द्वारा रचित पद्य साहित्य को उसके समालोचनात्मक आकलन के साथ क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित रूप में 'कविता कोसी' शीर्षक से प्रकाशित करने का प्रशंसनीय कार्य किया है। 'कविता कोसी' के अब तक (2009 ई.) पॉंच खंड प्रकाशित हैं, जिनकी प्रकाशक हैं अनीता पंडित प्रत्येक खंड में डॉ. कामेश्वर पंकज द्वारा लिखित समालोचनात्मक आलेख पुस्तक के प्रारंभ में दिया गया है।
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