Tuesday, September 7, 2010

कोशी की संस्‍कृति : कुछ अनछुए प्रसंग


'कोशी की संस्‍कृति : कुछ अनछुए प्रसंग' शीर्षक पुस्‍तक डॉ. रेणु सिंह के संपादन में भारती प्रकाशन, वाराणसी से 2009 में प्रकाशित हुई है। इस पुस्‍तक में कोसी अंचल की सांस्‍कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, दार्शनिक, पुरातात्‍िवक और ऐतिहासिक धरोहरों को उद्घाटित और रेखांकित करने के उद्देश्‍य से तेरह विद्वानों के आलेखों को संकलित किया गया है। पुस्‍तक के अंत में कोसी अंचल की धरोहरों के छायाचित्र भी प्रकाशित किए गए हैं।
कोसी अंचल में नागपूजन की परंपरा पर डॉ. प्रफुल्‍ल कुमार सिंह 'मौन' का आलेख, मंडन मिश्र पर केन्‍द्रित आचार्य धीरज का आलेख, गंधवरिया राजवंश और संगीत परंपरा पर श्री हरिशंकर श्रीवास्‍तव 'शलभ' का आलेख, अगस्‍त क्रांति और भारतीय स्‍वतंत्रता आंदोलन में कोसी अंचल की भूमिका पर डॉ. प्रभुनारायण विद्यार्थी का आलेख और कोसी अंचल की पांडित्‍य परंपरा पर डॉ. रेणु सिंह का आलेख हमारा ज्ञानवर्द्धन करते हैं और कोसी अंचल से जुडे् अनेक महत्‍वपूर्ण पहलुओं से हमारा परिचय कराते हैं।
कोसी की संस्‍कृति पर केन्‍द्रित डॉ. ओमप्रकाश पांडेय, डॉ. अरविन्‍द महाजन और श्री आदित्‍य श्रीवास्‍तव के आलेख भी महत्‍वपूर्ण हैं, वहीं गढ्बनैली राज की भूमिका पर डॉ. प्रतापनारायण सिंह का आलेख अपनी ही तरह का है। मुल्‍ला दाऊद के 'चांदायन' में उल्‍लेखित कुछ महत्‍वपूर्ण स्‍थानों की पहचान डॉ. रमेशचंद्र वर्मा ने कोसी अंचल के विभिन्‍न स्‍थलों के रूप में की है। कोसी अंचल के विश्‍वप्रतिष्‍ठ कथाकार फणीश्‍वरनाथ रेणु के 'मैला आंचल' के हवाले से डॉ. विभाशंकर ने आंचलिकता और राष्‍ट्रीयता के विन्‍दुओं पर सार्थक विमर्श प्रस्‍तुत किया है।
पुस्‍तक में दो आलेख अंग्रेजी में हैं, जिनमें से पहला श्री उमेश कुमार सिंह ने लिखा है और अपने आलेख में बुद्धकालीन अंगुत्‍तराप और आपण-निगम की पहचान कोसी अंचल के क्षेत्र के रूप में की है। दूसरा आलेख डॉ. पी.के. मिश्र का है, जिसमें उन्‍होंने कोसी अंचल के अद्यतन पुरातात्‍विक खोजों का उल्‍लेख किया है।
पुस्‍तक की संपादिका डॉ. रेणु सिंह संप्रति राजेन्‍द्र मिश्र महाविद्यालय, सहरसा, बिहार में प्रधानाचार्य हैं। आप द्वारा संपादित यह पुस्‍तक एक अमूल्‍य योगदान है। आपकी पूर्व प्रकाशित आलोचना कृति 'सत्‍यकाम : काव्‍य और दर्शन' को भी पाठकों की पर्याप्‍त प्रशंसा प्राप्‍त हुई थी।