Monday, December 28, 2009

'संवदिया' का कोसी केन्द्रित नवलेखन विशेषांक


संवदिया प्रकाशन, अररिया, बिहार द्वारा कोसी अंचल के वरिष्‍ठ कवि, कथाकार श्री भोला पंडित 'प्रणयी' के प्रधान संपादन में 'संवदिया' नामक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन पिछले पॉंच सालों से हो रहा है। आरंभ से ही पत्रिका के हर अंक में कोसी अंचल के किसी महत्‍वपूर्ण दिवंगत लेखक का परिचय, फोटो और उसके कृतित्‍व का आकलन करनेवाले लेख छापे जाने की परंपरा का निर्वाह इस पत्रिका ने निरंतर किया है।
'संवदिया' का अक्‍तूबर-दिसंबर 2009 का अंक कोसी के‍न्द्रित नवलेखन अंक है। इस अंक के साथ ही पत्रिका ने अपने छठे वर्ष में प्रवेश किया है। यह विशेषांक साहित्‍य अकादेमी में कार्यरत कोसी अंचल के युवा कवि-आलोचक देवेन्‍द्र कुमार देवेश के अतिथि संपादन में प्रकाशित हुआ है। अपने संपादकीय में उन्‍होंने लिखा है-इस अंक को केवल पिछले कुछेक सालों में कलम पकड़कर उत्‍साहपूर्वक लेखन की ओर प्रवृत्‍त होनेवाले नवातुर नवतुरिया लेखकों पर ही न केन्द्रित करके बीसवीं सदी के अंतिम दशक में हिन्‍दी साहित्‍य के समकालीन परिदृश्‍य पर कुछ हद तक अपनी पहचान बना चुकी कोसी अंचल की नई पीढ़ी पर केन्द्रित किया गया है। साथ ही इसमें इसमें इक्‍कीसवीं सदी के प्रथम दशक में लेखन की दुनिया में कदम रखनेवाली पीढ़ी को भी स्‍थान दिया गया है।
संपादकीय में कोसी अंचल की साहित्‍य परंपरा का संक्षिप्‍त अवगाहन प्रस्‍तुत करते हुए इसे सिद्ध कवि सरहपा, रीति कवि जयगोविन्‍द महाराज, सूफी कवि शेख किफायत, भक्‍त कवि लक्ष्‍मीनाथ परमहंस और संत कवि मेंहीं की भूमि बताया गया है, जिसे अनूपलाल मंडल, जनार्दन प्रसाद झा द्विज, फणीश्‍वरनाथ रेणु, राजकमल चौधरी और लक्ष्‍मीनारायण सुधांशु जैसे हिन्‍दी लेखकों ने भी अपनी ख्‍याति से प्रकाशित किया।
इस अंक में पंद्रह कवियों की कविताऍं, पॉंच कथाकारों की क‍हानियॉं और पुस्‍तक समीक्षाऍं प्रकाशित की गई हैं। कवियों के नाम हैं-अरविन्‍द श्रीवास्‍तव, कल्‍लोल चक्रवर्ती, श्‍याम चैतन्‍य, कृष्‍णमोहन झा, उल्‍लास मुखर्जी, राजर्षि अरुण, शुभेश कर्ण, राकेश रोहित, हरे राम सिंह, देवेन्‍द्र कुमार देवेश, पंकज चौधरी, स्मिता झा, अनुप्रिया, अरुणाभ सौरभ और कुमार सौरभ। कविताओं पर हिन्‍दी के प्रतिष्ठित कवि-आलोचकों डॉ. विश्‍वनाथ प्रसाद तिवारी और डॉ. सुरेन्‍द्र स्निग्‍ध की टिप्‍पणियॉं प्रकाशित की गई हैं।
अंक में संजीव ठाकुर, संजय कुमार सिंह, रणविजय सिंह सत्‍यकेतु, श्रीधर करुणानिधि और उमाशंकर सिंह की क‍हानियॉं हैं, जिनपर डॉ. ज्‍योतिष जोशी और डॉ. देवशंकर नवीन की टिप्‍पणियॉं छापी गई हैं। यह अंक ओमप्रकाश भारती के आलेख और देवांशु वत्‍स की लघुकथाओं से भी सुसज्जित है।
'संवदिया' का आगामी अंक भी नवलेखन विशेषांक के रूप में निकालने की घोषणा की गई है, जिसमें शामिल होनेवाले 15 कवियों, 5 कथाकारों के नामों की घोषणा भी इस अंक में की गई है। संवदिया के इस अंक का मूल्‍य 30 रुपये है, जबकि इसकी वार्षिक सदस्‍यता 80 रुपये मात्र है। पत्रिका की प्रति अथवा सदस्‍यता के लिए निम्‍नांकित पते संपर्क किया जा सकता है- श्री भोला पंडित प्रणयी, संवदिया प्रकाशन, जयप्रकाश नगर, वार्ड नं. 7, अररिया, बिहार 854311,
मोबाइल नं.9931223187, ई-मेल : samvadiapatrika@yahoo.com

Monday, December 21, 2009

चंद्रकिशोर जायसवाल का उपन्‍यास 'सात फेरे'



अभी हाल ही में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा हिन्‍दी के प्रतिष्ठित कथाकार चंद्रकिशोर जायसवाल का नवीनतम उपन्‍यास 'सात फेरे' प्रकाशित किया गया है। ज्ञातव्‍य हो कि ज्ञानपीठ द्वारा वर्ष 2009 को 'उपन्‍यास वर्ष' घोषित किया गया है। इस वर्ष ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित उपन्‍यासों में उक्‍त उपन्‍यास आकार में सबसे बड़ा है।
कोसी अंचल के मधेपुरा जिलांतर्गत बिहारीगंज नामक गॉंव में 1940 ई. में जन्‍में चंद्रकिशोर जायसवाल हिन्‍दी के उन गिने-चुने कथाकारों में हैं, जिनके पास कम-से-कम एक दर्जन ऐसी कहानियॉं हैं, जिन्‍हें सदी की श्रेष्‍ठ कहानियों की सूची में बेहिचक रखा जा सकता है। 'नकबेसर कागा ले भागा', 'दुखियादास कबीर', 'बिशनपुर प्रेतस्‍य', 'हिंगवा घाट में पानी रे', 'मर गया दीपनाथ', ' 'सिपाही', 'कालभंजक', 'आखिरी ईंट', 'तर्पण', 'आघातपुष्‍प' और जैसी अप्रतिम कहानियॉं लिखनेवाले चंद्रकिशोर जायसवाल का यह आठवॉं उपन्‍यास है। उनके पूर्व प्रकाशित उपन्‍यासों के नाम हैं-'गवाह गैरहाजिर', 'जीबछ का बेटा बुद्ध', 'शीर्षक', 'चिरंजीव', 'दाह', 'मॉं' और 'पलटनिया'। जायसवाल जी के नौ कहानी-संग्रह, चार एकांकी पुस्तिकाऍं और दो नाटक भी प्रकाशित हैं।
रामवृक्ष बेनीपुरी सम्‍मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्‍मान, आनंद सागर कथाक्रम सम्‍मान और बिहार राष्‍ट्रभाषा परिषद के साहित्‍य साधना सम्‍मान से सम्‍मानित जायसवाल जी के प्रथम प्रकाशित उपन्‍यास 'गवाह गैरहाजिर' पर राष्‍ट्रीय फिल्‍म विकास निगम द्वारा 'रुई का बोझ' शीर्षक फिल्‍म का निर्माण भी किया जा चुका है। दूरदर्शन द्वारा उनकी कहानी 'हिंगवा घाट में पानी रे' का फिल्‍मांकन और प्रसारण भी हुआ है।
'सात फेरे' एक तिहेजू वर बैजनाथ की कहानी है, जिसकी तीन बीवियॉं मर चुकी हैं; और वह चौथी बीवी की तलाश में निकला है। इस तलाश में उसका साथी है पलटू झा नामक पंडित। दोनों कन्‍याखोजी अभियान में सात बार अलग-अलग दिशाओं में यात्रा पर निकलते हैं और अंतिम यात्रा के पहले हर यात्रा में अपनी दुर्दशा करवाकर लौटते हैं। एक अधेड़ व्‍यक्ति के सात फेरों के लिए लगाए गए सात रोचक और रोमांचक फेरों की ही कथा है यह 'सात फेरे'। जायसवाल जी ने अपनी चिर-परिचित शैली में विभिन्‍न यादगार चरित्रों के माध्‍यम से व्‍यक्ति, परिवार, समाज और देश काल के यथार्थ का व्‍यंग्‍य-विनोदपूर्ण चित्रण किया है। यद्यपि उपन्‍यास वृहदाकार है, लेकिन एक बार पढ़ना शुरू करने के बाद इसे बीच में ही छोड़ पाना किसी भी पाठक के लिए मुश्किल है।
उपन्‍यास में कोसी अंचल के लोकजीवन, लोकसंस्‍कृति और लोकसाहित्‍य के अनेक लिखित-अलिखित विवरणों को कुशलता से पिरोया गया है और समकालीन समय के ग्रामांचलीय यथार्थ को सूक्ष्‍मता से उद्घाटित किया गया है।